Friday, July 29, 2011

म्हारी पीड़ री वां’नैं खबर लागै



उडीकूं रोज… , म्हारी पीड़ री वांनैं खबर लागै
मगर मनमीत पर म्हारै दुशमणां रौ असर लागै
भंवर सूं पार उतरूं म्है जे थारौ हाथ हाथां में
बिछोड़ा जद हुया थासूं  ; किनारो भी भंवर लागै
कसमसावै घणा वे लोग सिंघासण पलंगां  पर
बबूली छांव में म्हांनैं छतर लागै चंवर लागै
भर्या भण्डार जद घर में ; संतरी  सांतरा राखै
लुट गया माल मत्ता तो न भय लागै न डर लागै
मगज ठंडो नज़र नीची सबद मीठा घणा मुश्किल
चढै मद राज रौ बांनैं  मतीरो भी मटर लागै
ज़मीं में ज़हर धोखै रौ , हवा में चापलूसी है
मनां में मैल मिनखां रैअजूबो औ शहर लागै
शहर में खूब चर्चा है समझ कोनी सकै कोई
जोगेश्वरगयो-गुजर्यो न जोगेश्वरज़बर लागै
ग़ज़लकार : जोगेश्वर गर्ग

2 comments:

ओम पुरोहित'कागद' said...

भोत ई जोरदार !
बधायजै सा !

Rajput said...

मगज ठंडो नज़र नीची सबद मीठा घणा मुश्किल
चढै मद राज रौ बां’नैं मतीरो भी मटर लागै
बहुत खूब |